हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि मोबाइल फोन और उसका चार्जर एक जैसे उपकरण नहीं माने जा सकते। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दोनों को अलग-अलग डिवाइस माना जाएगा और इस आधार पर इन पर अलग-अलग वैट (VAT) लागू होगा।
इस फैसले के मुताबिक, मोबाइल फोन के साथ मिलने वाला चार्जर एक “अनिवार्य हिस्सा” नहीं माना जाएगा। इसलिए, जब कोई कंपनी या दुकानदार मोबाइल के साथ चार्जर बेचता है, तो चार्जर पर 13.75% वैट देना होगा, जो कि अलग से गिना जाएगा।
क्यों लिया गया यह फैसला?
हाईकोर्ट में यह मामला तब सामने आया जब एक मोबाइल कंपनी ने यह दावा किया कि चार्जर, मोबाइल का ही हिस्सा होता है, इसलिए उस पर अलग से टैक्स नहीं लगाया जाना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने यह तर्क स्वीकार नहीं किया और कहा कि चार्जर को अलग से खरीदा जा सकता है और उसका उपयोग अन्य उपकरणों के साथ भी किया जा सकता है।
इसका असर क्या पड़ेगा?
-
मोबाइल कंपनियों और रिटेलर्स को अब मोबाइल और चार्जर की कीमतें अलग-अलग दिखानी होंगी।
-
ग्राहक को अगर चार्जर अलग से चाहिए तो उस पर अतिरिक्त टैक्स देना पड़ सकता है।
-
इससे टैक्स सिस्टम में पारदर्शिता आएगी और टैक्स चोरी की संभावनाएं कम होंगी।
उपभोक्ताओं को क्या समझना चाहिए?
अगर आप कोई नया मोबाइल खरीदते हैं, तो यह जान लें कि अब कंपनियां चार्जर को बॉक्स में शामिल ना करके अलग से बेच सकती हैं। ऐसे में चार्जर की कीमत पर आपको 13.75% वैट अतिरिक्त देना पड़ सकता है।
निष्कर्ष:
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला टेक्नोलॉजी और टैक्स सिस्टम दोनों के लिए अहम है। यह न सिर्फ टैक्स नियमों को स्पष्ट करता है, बल्कि ग्राहकों को भी जागरूक करता है कि वे क्या खरीद रहे हैं और उस पर उन्हें कितना टैक्स देना होगा।