हिमाचल प्रदेश, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है, अब एक नई चर्चा में है — इस बार वजह है पंचायतों की लापरवाही। ताजा जानकारी के अनुसार, प्रदेश की कई पंचायतों ने बिना किसी वैध मंजूरी के लाखों की सरकारी संपत्तियां बेहद कम किराये पर किरायेदारों को दे दी हैं।
क्या है मामला?
राज्य के विभिन्न क्षेत्रों की पंचायतों ने दुकानों, सामुदायिक भवनों और अन्य संपत्तियों को बेहद कम कीमत पर किराये पर दे रखा है। कई मामलों में न तो इस फैसले की कोई लिखित स्वीकृति ली गई, न ही किसी प्रकार की पारदर्शिता बरती गई। इससे न केवल सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है, बल्कि सार्वजनिक संपत्तियों के दुरुपयोग की संभावना भी बढ़ गई है।
बिना मंजूरी कैसे हुआ सब कुछ?
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, कई पंचायत प्रतिनिधियों ने ‘मौखिक सहमति’ के आधार पर यह संपत्तियां किराये पर दीं। किसी भी प्रकार की प्रशासनिक मंजूरी या ग्राम सभा की स्वीकृति नहीं ली गई, जो कि नियमों के अनुसार अनिवार्य है। यह सीधा-सीधा पंचायत एक्ट और सरकारी गाइडलाइंस का उल्लंघन है।
किराया इतना कम क्यों?
कुछ पंचायतों ने बाजार दर से कई गुना कम किराया तय किया है। उदाहरण के तौर पर, जहां बाजार में किसी दुकान का किराया ₹5000 प्रति माह होना चाहिए, वहां पंचायत ने उसे मात्र ₹500 या ₹1000 में दे रखा है। इससे स्पष्ट होता है कि कहीं न कहीं मिलीभगत का मामला भी सामने आ सकता है।
प्रशासन क्या कर रहा है?
अब जब यह मामला सुर्खियों में आ गया है, तो स्थानीय प्रशासन ने जांच के आदेश दे दिए हैं। जिला अधिकारियों ने संबंधित पंचायतों से रिपोर्ट तलब की है और यह सुनिश्चित करने की बात कही है कि आगे से कोई भी संपत्ति बिना कानूनी प्रक्रिया के किराये पर न दी जाए।
जनता की मांग
स्थानीय लोगों का कहना है कि पंचायतों द्वारा ली गई इन फैसलों की पूरी जांच होनी चाहिए और दोषी प्रतिनिधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही, ये मांग भी उठ रही है कि भविष्य में पंचायतों को इस प्रकार की संपत्तियां किराये पर देने के लिए एक पारदर्शी और डिजिटल प्रक्रिया अपनानी चाहिए।